आओ तुमको ले चल
राम सिया के देश र
कौशल्या की गोद में परगत
अवध कुंज में अवध बिहार
सिया संग में रचा स्वयंवर
तोड़े धनुष सरस धनुधार
आई जनक में जनक दुलार
हर्ष दे हर इक चरण पखर
मोहे राम रंग रंग दे र
मोहे राम रंग रंग दे र
राम निहारे सिया को र
सिया निहारे राम को र
दासी मैं राम की दासी र
दासी मेरे राम की दासी र
कैकेयी को राज तिलक त
राम चदर का रास न आय
दशरथ के शरण आकर बोल
उनका वार उन्हें याद दिलाय
दशरथ बोले मांगो प्रिये तुम
तन मन धन सब तुम पर अर्पण
भरत को दो तुम राज सिंहासन
14 वर्ष का राम को दो वन
पुतर पिता का वचन निभान
वन की और लगे कदम बढ़ान
सीते बोली हे रघुनंदन
मैं भी चलूं वन धर्म निभान
रात की ममता लखन को खींच
राम सिया के चल भए पीछ
चल भए पीछ
चितरकूट के घाट सजाई
झूठी बेर सबरी की खाई
रूपवती ले रूप सुर्पणख
नाक कटा के पौंची लंक
लंका में रावण का डंक
काटा न कागरन वंक
धिक्कर है धिक्कर ह
धिक्कर है भाई रावण
तेरी वीरता को धिक्कर ह
वन में आए दो नर नार
एक ने कटी नाक हमार
शंकनाद सा लगे गरजन
पहुचा छल कर सिया को हरन
मरीच वन मृग चलल प्रय
लागल वान लखन कोहनई
साधु बेश धर के चलकर
भिक्षा दो मोहे हाथ पुकार
कर के हरण चल दिया असंक
पहुच गया सिया हर ले लंक
वान वान ढूंढत लखन रघुवीर
सहत कलेश कठिन तन पीड
कल पट प्रभु से कहत जटाय
सिया हरन का राज बताय
मिले कपिहरि मन अनुराग
प्रभु के दास सफल कर काज
संका तो उड़े हनुमंत रान लंक
फूंक दिए जाकर गढ़ लंक
हाँ लंका फूंक दिए हनुमंत ने लंक
माता मैं अज्ञ चाहता ह
श्री राम चंद्र के लिए कोई संदेश ह
तो आदेश हो मात
हरि चरण चूकर आशीष लेन
चूड़ा मणि कपि प्रभु को देन
हरि बिन कितना मन है व्याकुल
राम को सिये का संदेश देन
जा रे पवन जा लेजा संदेश
पी को मेरे लेजा संदेश
पवनसुत्त सुध ले आए
राम को सिया का हाल बताए
हह कार गुंजनल गगनगन
बौध से वान चले है संसन
घमासान चिढ़ गई लड़ाई
असुर संघार विजय हरिपाय
रावण वध कर सिया लिया क
लखन सहित अब अवध में आ क
राम राज भयी सब जग जान
प्रभु लीला सब जगत बखान
मोहे राम रंग रंग द
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